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कहते है जो बाकी छुपाते है…

एंबुलेंस नहीं, ‘चलती-फिरती मौत’! RTO-स्वास्थ्य विभाग की ‘जुगाड़ एक्सप्रेस’ पर सवाल


मरीज़ ‘लाइफ सपोर्ट’ पर, मगर ‘जीवन रक्षक सेवा’ ख़ुद ‘वेंटिलेटर’ पर हाँफ रही है!

नीमच | जिले की स्वास्थ्य व्यवस्थाएँ इन दिनों गंभीर सवालों के घेरे में हैं। नीमच की सड़कों पर जर्जर, कंडम अवस्था में दौड़ रही 108 और निजी एंबुलेंस न केवल प्रशासनिक लापरवाही का मामला हैं, बल्कि यह सीधे-सीधे आम नागरिकों की जान के लिए खतरा बन चुकी हैं।

जिस वाहन को मरीजों की सुरक्षा का आधार होना चाहिए, वह खुद उपचार की हालत में दिखाई दे रहा है। यह स्थिति जिला प्रशासन और संबंधित विभागों की निगरानी प्रणाली पर कठोर प्रश्नचिह्न लगाती है।


जवाबदेही का ‘कंडम खेल’ — फिटनेस पर सवाल

स्थिति का सबसे चिंताजनक पक्ष यह है कि कंडम एंबुलेंसें बिना रोक-टोक के सड़क पर संचालित हो रही हैं। एंबुलेंस पर लिखा रहता है—
“आपकी सेवा में 24×7”,
लेकिन हालात देखकर लगता है मानो गाड़ी खुद किसी ट्रॉमा सेंटर की तलाश में हो।


MP-02/AV-7228: पीछे का टूटा दरवाज़ा—वीडियो ने खोली सच्चाई

CMHO ने स्वीकार किया कि रतनगढ़ में 108 सेवा की एक कंडम एंबुलेंस मौजूद है, हालांकि उन्होंने दावा किया कि “गाड़ी बिल्कुल सही है और मरीजों को लाती रहती है।”

लेकिन उपलब्ध वीडियो फुटेज ने यह दावा पूरी तरह गलत साबित कर दिया। फुटेज में:

  • एंबुलेंस का पीछे का लॉक टूटा हुआ है,

  • चलते समय दरवाज़ा बार-बार खुल रहा है,

  • वाहन की बॉडी काफी जर्जर दिखाई दे रही है।

इस हालत में गंभीर मरीज का सफर किसी बड़े खतरे से कम नहीं है।


क्या RTO का ‘फिटनेस सर्टिफिकेट’ टूटे दरवाज़ों को मंज़ूर करता है?

सबसे गंभीर प्रश्न यह है कि इतनी खराब हालत वाली एंबुलेंस को फिटनेस कैसे दिया गया?
यदि सफर के दौरान दरवाज़ा खुलने से कोई मरीज या परिजन दुर्घटना का शिकार हो जाए, तो जवाबदेही किसकी होगी?


जवाबदेही की फुटबॉल — विभागों के बीच जिम्मेदारी इधर-उधर

जिले के शीर्ष अधिकारियों से बात करने पर विभागीय तालमेल का अभाव स्पष्ट रूप से सामने आया।

सवाल: जिले में कितनी 108 व निजी एंबुलेंस?

➡️ सिविल सर्जन: “यह जानकारी CMHO बताएंगे।”

सवाल: निजी एंबुलेंस कितनी?

➡️ CMHO: “मेरे पास जानकारी नहीं, यह सिविल सर्जन बताएंगे।”

सवाल: कितनी 108 एंबुलेंस संचालन में?

➡️ CMHO: “23। जिनमें 12 जननी एक्सप्रेस, 9 BLS (बेसिक लाइफ सपोर्ट) और 2 ALS  (एडवांस लाइफ सपोर्ट) शामिल हैं।”

सवाल: कंडम एंबुलेंस MP-02/AV-7228?

➡️ CMHO: “कंडम है, लेकिन सेवा में है।”
(वीडियो इसकी वास्तविक स्थिति इसके विपरीत दिखाता है।)

सवाल RTO से: कितनी एंबुलेंस फिट हैं?

➡️ RTO: “मैं CMHO से जानकारी लेकर बताता हूँ।”

विभागों के इन विरोधाभासी उत्तरों से स्पष्ट है कि जिले में एंबुलेंस संचालन की जिम्मेदारी किसी भी विभाग के पास स्पष्ट रूप से निर्धारित नहीं है।


VIP के लिए सुरक्षित वाहन, जनता के लिए जर्जर एंबुलेंस?

स्थानीय सूत्रों का कहना है कि अपेक्षाकृत अच्छी स्थिति वाली एंबुलेंसें VIP गतिविधियों में लग जाती हैं, जबकि ग्रामीण व सामान्य मरीजों को पुरानी, क्षतिग्रस्त एंबुलेंस ही मिलती हैं। यह व्यवस्था न केवल गलत है, बल्कि यह स्वास्थ्य सेवाओं की पारदर्शिता पर भी प्रश्न उठाती है।


मुख्य प्रश्न — यदि मरीज गिर गया तो जिम्मेदार कौन?

  1. क्या फिटनेस जारी करने वाला विभाग?

  2. क्या सेवा का संचालन करने वाली टीम?

  3. या वह प्रशासन जो निरीक्षण की जिम्मेदारी निभाने में असफल रहा?

जिला प्रशासन को इस गंभीर प्रश्न का जवाब देना ही होगा।


जिले के लिए तत्काल कदम आवश्यक

इस पूरे मामले में तीन प्रमुख समस्याएँ साफ नज़र आती हैं—

  • विभागीय समन्वय की कमी

  • एंबुलेंसों की वास्तविक स्थिति की जानकारी का अभाव

  • फिटनेस और निरीक्षण प्रणाली पर सवाल

जर्जर एंबुलेंस किसी भी समय बड़े हादसे का कारण बन सकती हैं।
इसलिए ज़रूरी है कि—

  • जिले की सभी एंबुलेंसों का तत्काल तकनीकी निरीक्षण कराया जाए,

  • फिटनेस जारी करने की प्रक्रिया की समीक्षा की जाए,

  • और स्पष्ट जिम्मेदारी तय की जाए।

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Aakash Sharma (Editor) The Times of MP

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