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कहते है जो बाकी छुपाते है…

अष्टमुखी महादेव के चेहरे पर वक्त के निशान: पशुपतिनाथ प्रतिमा की आंखों में स्क्रैच और उखड़ता वज्र लेप


  • 16 साल बाद फिर से ‘संजीवन’ देंगे विशेषज्ञ

  • 1200 साल पुरानी विरासत को बचाने की जंग

(ब्यूरो रिपोर्ट, मंदसौर) शिवना नदी के तट पर विराजे, दुनिया के एकमात्र अष्टमुखी भगवान पशुपतिनाथ की आभा पर समय की धुंध छाने लगी है। करीब 1200 साल पुरानी इस दुर्लभ प्रतिमा ने सदियों तक प्रकृति की मार झेली है, लेकिन अब इसके संरक्षण के लिए लगाए गए आधुनिक ‘केमिकल’ और पौराणिक ‘वज्र लेप’ ने ही जवाब दे दिया है। मंदसौर के आस्था के केंद्र में आज चिंता की लकीरें हैं—क्योंकि महादेव की मूर्ति की नाक उखड़ रही है और आंखों में खरोंच के निशान उभर आए हैं।

धुंधला पड़ रहा है ‘सृजन’ और ‘संहार’ का स्वरूप मंदिर के गर्भ गृह में जब आप ध्यान से देखेंगे, तो पाएंगे कि जिस भव्यता के लिए यह प्रतिमा विश्व विख्यात है, वह थोड़ी मद्धिम पड़ रही है।

  • क्या है नुकसान: मूर्ति के चेहरे के एक हिस्से में लंबी लकीर बन गई है। नाक का हिस्सा खुरदरा होकर उखड़ने लगा है।

  • वजह: दरअसल, मूर्ति पर चढ़ने वाले जल, दूध, बेलपत्र और फूलों के लगातार घर्षण से सुरक्षा परत (Vajra Lep) हट गई है। 2009-10 में जो लेप लगाया गया था, उसकी मियाद पूरी हो चुकी है। जहाँ-जहाँ से केमिकल हटा है, वहाँ पत्थर का मूल स्वरूप बाहर आने से क्षरण (Erosion) शुरू हो गया है।

ASI की ‘सर्जरी’: कैसे संवरेगी प्रतिमा ?

प्रशासन और पुरातत्व विभाग (ASI) ने इसे गंभीरता से लिया है। एक तरह से मूर्ति की ‘कॉस्मेटिक सर्जरी’ की तैयारी है, लेकिन पूरी तरह वैदिक और वैज्ञानिक तरीके से।

  1. बंगाल की टीम का सर्वे: पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों ने मूर्ति का बारीकी से मुआयना किया है और सैंपल लैब में भेजे हैं।

  2. दोबारा वज्र लेप: कलेक्टर अदिति गर्ग के अनुसार, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के सुझावों के आधार पर जल्द ही दोबारा वज्र लेप की प्रक्रिया शुरू होगी। यह एक प्राचीन भारतीय तकनीक है जिससे मूर्तियों की उम्र बढ़ाई जाती है।

  3. पशुपतिनाथ लोक: 25 करोड़ की लागत से बन रहे ‘पशुपतिनाथ लोक’ के लोकार्पण से पहले प्रशासन चाहता है कि महादेव अपने पूर्ण, अलौकिक स्वरूप में दर्शन दें।

नदी के गर्भ से मंदिर के शिखर तक का सफर इस मूर्ति का इतिहास किसी रहस्य रोमांच से कम नहीं है।

  • 1940 की खोज: 19 जून 1940 को यह प्रतिमा शिवना नदी के पानी के भीतर से मिली थी। तब चार मुख तो साफ थे, लेकिन पानी में पड़े रहने के कारण बाकी चार मुख धुंधले पड़ गए थे।

  • अद्वितीय शिल्प: नेपाल के पशुपतिनाथ में चार मुख हैं, लेकिन मंदसौर की प्रतिमा में आठ मुख हैं। एक ही पत्थर (Monolithic) पर उकेरी गई यह प्रतिमा गुप्तकालीन शिल्प का बेजोड़ नमूना है। इसमें शिव के बाल्यकाल से लेकर रौद्र और समाधि तक के आठ अलग-अलग भाव (सृजन, संरक्षण, संहार, तांडव, योगी, ध्यानस्थ, अघोर और सौम्य) जीवित हैं।

अब आगे क्या? विशेषज्ञों का मानना है कि पत्थर का क्षरण एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन समय रहते ‘वज्र लेप’ इसे रोक सकता है। मंदसौर का हर श्रद्धालु अब उस पल का इंतजार कर रहा है जब उनके आराध्य का चेहरा फिर से उसी पुरानी चमक के साथ दमक उठेगा।

 

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Aakash Sharma (Editor) The Times of MP

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